अंत में बूढ़ा हो रहा है और हवा को मेरे पास आने दो गर्दन पर ठंडा . उम्र कोई भी हो जब तक हमारा बचपन है , कोई फर्क नहीं पड़ता पथ यात्रा की जब तक हमारे पास दृष्टि है , कमजोर शरीर से कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक हमारे पास ऊंचाई है , लत से कोई फर्क नहीं पड़ता बशर्ते हमारे पास परिपक्वता हो , सीढ़ी नहीं चढ़ सकते तो क्या फर्क पड़ता है क्योंकि हम पैमाने हैं जुड़ने की इस आज़ादी के साथ . खुलापन और कोमलता छोटे कदमों से सजी शांति के साथ तालाब के आसपास जहां सब कुछ टिकी हुई है . अंत में बूढ़ा हो रहा है और हवा को मेरे पास आने दो गर्दन पर ठंडा . 213