तुम्हे याद है नहर के किनारे समतल पेड़ शाम को कौवे रौशनी के झरोखों से पानी की आवाज से वर्तनी ट्रीटॉप्स से चिपके हुए राजसी खुला बादल विभाजित होठ बाहों का झूलना मंदिर के स्तंभों के लिए मेट्रोनोमिक ऑस्केल्टेशन छेद जो हल्की बाढ़ गर्मियों की रात समाप्त पसीने से तर विद्रोहियों को कि हवा गले लगाती है उग्र रोमांच सरल उत्तर कि कदम मुड़ जाते हैं सुखद ओस के नीचे गुलाबी गाल मोमबत्तियां दिखाओ हड़ताली छाया में आपके कंधे पर हल्का कपड़ा आपकी आवाज में लहरें मेमोरी का इंडेंटेशन गुजरते समय की दीवार .